Sunday 22 July 2012

HINDI POEM ( New)--- CHALTE CHALTE ---- HUM KAHAn

चलते चलते हम तो यह, कहां चले आए हैं?
पीछे तो अपने अब, धुन्धले धुन्धले साए है।
  
याद हमको आती है, मां के उस आंचल की;
 बहिनो की राखी की, घर के उस आंगन की।
 कैसे भुलाएं वह दिन, जब सपने सजाए थे?
 सपनो की टोह में फिर, कहां निकल आए यह?

 चलते चलते हम तो यह, कहां चले आए हैं?
 पीछे तो अपने अब, धुन्धले धुन्धले साए है।

 अनजान राहें थी और कितने ही मोड थे?
 चलते रहे बे-फिक्र हम, अपनी ही होड में;
 मुड के ना देखा कभी, कैसा यह जुनून था?
 साथी छूटे, नाते टूटे दिल को न सुकून था।

 चलते चलते हम तो यह, कहां चले आए हैं?
पीछे तो अपने अब, धुन्धले धुन्धले साए है।

 गुजरे हुए लम्हे कुछ, जब याद आते है?
 हमारी खुदगर्जी के वह किस्से बताते है।
 भूलें मां बाप को हम, वह न भूल पाए है?
 उनके वदन में अनगनित कांटे चुभाए है।

 चलते चलते हम तो यह, कहां चले आए हैं?
पीछे तो अपने अब, धुन्धले धुन्धले साए है।

 आज भी यह मौका है रोक लो कदम अपने,
 जागो तुम नींद से, तोड दो यह झूठे सपने।
 हकीकत में जीने के अब दिन"राजी" आए है-
 शुक्र है खुदा का तुम्हे साठवें साल में लाए है।

 चलते चलते हम तो यह, कहां चले आए हैं?
पीछे तो अपने अब, धुन्धले धुन्धले साए है।

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