Wednesday, 30 January 2013

सारी रात किया मैंने------- एक ग़ज़ल

अर्ज है:----


छोड़ आए है पीछे, न जाने कितने मक़ाम; 
धुँधली धुँधली यादें है, कुछ बिखरे अरमान; 
वह चेहरों का जमघट, वह अनजान राहें ! 
हर मुसाफ़िर के जीवन का यही है अन्जाम ।

क्योंकि :----


सारी रात किया मैंने जिनका इन्तज़ार,
आए नहीं वह लेकिन किया था इकरार;------2

अब न रखेंगे क़दम, हम तेरी गलियों में,
क्यों मंडराएगा, भँवरा अब कलियों पे ?-----2

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