"आप कैसे हो", उसने बडी ही नजाकत से पूछा?
चुपचाप खडा उसे यूं ही बस मैं निहारने लगा;
"कैसे हो आप", उसने फिर से प्रश्न दोहराया?
"क्या जवाब दूं", मैं खामोश फिर सोचने लगा ।
"कौन है यह, क्यों पूछ रहा है मेरा हाल?"
उठने लगे मेरे जहन में बार-बार यह सवाल"
अनजान सी आवाज और अजनबी सा चेहरा-
कैसे पूछता मैं उसको, "क्या मन्तव्य है तेरा?"
"मै वक्त हूं, तेरा हमराज, ओ प्यारे हिन्दोस्तान!
क्या अब भी नही कर पाए तुम मेरी पहचान?
मैं करना चाह्ता हूं तुझे तेरी हरकतों से आगाह,
तेरी गुलामी की फिर से न बन जाए यह बजह"
"ओह! भाषण तो तुम अच्छा दे लेते हो मेरे यार,"
यकायक मेरे लवों से हो गई यह शव्दों की फुहार;
"भाषण और हमदर्दी की नही है मुझे आज जरूरत-
दिखा दो मुझे किसी कर्मठ और निष्ठावान की सूरत"
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