Tuesday 8 January 2013

ज़रूरत-ए-हिन्दोस्तान



     "आप कैसे हो", उसने बडी ही नजाकत से पूछा?
     चुपचाप खडा उसे यूं ही बस मैं निहारने लगा;
     "कैसे हो आप", उसने फिर से प्रश्न दोहराया?
      "क्या जवाब दूं", मैं खामोश फिर सोचने लगा । 
      "कौन है यह, क्यों पूछ रहा है मेरा हाल?"
       उठने लगे मेरे जहन में बार-बार यह सवाल"
      अनजान सी आवाज और अजनबी सा चेहरा-
       कैसे पूछता मैं उसको, "क्या मन्तव्य है तेरा?" 
      "मै वक्त हूं, तेरा हमराज, ओ प्यारे हिन्दोस्तान!
       क्या अब भी नही कर पाए तुम मेरी पहचान?
       मैं करना चाह्ता हूं तुझे तेरी हरकतों से आगाह,
       तेरी गुलामी की फिर से न बन जाए यह बजह" 
     "ओह! भाषण तो तुम अच्छा दे लेते हो मेरे यार,"
     यकायक मेरे लवों से हो गई यह शव्दों की फुहार;
     "भाषण और हमदर्दी की नही है मुझे आज जरूरत-
      दिखा दो मुझे किसी कर्मठ और निष्ठावान की सूरत"


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