Monday 7 January 2013

अन्ना की आन्धी----


अर्ज किया हैः-
ईमान से रहने आया था मैं शहर में तुम्हारे,
मगर यहां तो मुझ से भी बडे कमीने है यार;
उकता के छोडना पडेगा मुझे यह शहर तेरा,  
क्योंकि शहर बाले तेरे मां के दीने है यार|
क्योंकि :-
राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो, 
उठा के सर पे चले है हम कफन दोस्तो; 
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो, 
फना होने का हमने अब इरादा कर लिया-- 
ताबूत शिकारी का भी साथ ले आए, दोस्तो।
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो,
बेईमानो की देश में मनमानी चल रही--
आबाज उठाना भी मुमकिन नही है, दोस्तो;
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो,
'संसद सब से बडी' अब यह दाबा हो रहा,
काली-करतूतों का चिट्ठा खुला जब, दोस्तो;
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो,
देश को सदगुणों का पाठ यह पढाते रहे--
मगर दिन के उजाले में लूटा देश, दोस्तो । 
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो,
क्यों गद्दी पे बिठाया 'मिट्टी के माधो' को?
कुछ कुछ माजरा समझ, यह आया दोस्तो;
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो,
'माधो' दब गया है इतना एहसानो तले,
अब न आंखे, न कान, न मुंह है, दोस्तो; 
-----राह-ए-इन्साफ पे बैठे है शिकारी दोस्तो; 
कोई कोसे भ्रष्टाचार, कोई कोसता उग्रबाद,
पर सब से बुरी देश की सियासत दोस्तो । 
----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो,
आम-आदमी के संयम की अब इन्तहा हो गई,
बन्दूक उठाने से रोको, किस किस को दोस्तो?
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो, 
ऐसे 'अन्ना' के नाम की आज चली है आन्धी,
  चोर-उच्चकों का जीना अब दुश्वार दोस्तो।
-----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो, 
तंग होके "राजी" लोग 'नक्स्लबादी' बन रहे,
कहीं 'अन्नबादी' उनसे न मिल जाएं दोस्तो? 
----राह-ए-ईमान पे बैठे कुछ शिकारी दोस्तो,


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