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KAISA HAI ZAMAANA(WHAT TIMES HAVE COME)--A SONG IN HINDUSTANI
by rajee kushwaha inCreative
Posted on 16 Sep 2008
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम|
कैसा था जमाना, वह कैसे होंगे लोग;
दीन, धर्म, ईमान पे होते थे कुर्बान।
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम|
कैसा था जमाना, वह कैसे होंगे लोग;
दीन, धर्म, ईमान पे होते थे कुर्बान।
देखो आज के परिवार, मां-बाप का है तिरस्कार?
करे बेटी का ब्लातकार, बहिने बिकती सर-ए-बाजार;
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम|
करे बेटी का ब्लातकार, बहिने बिकती सर-ए-बाजार;
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम|
सब पर पैसे का जुनून, न कोई कायदा न कानून;
ढूंढे मजहव में सुकून, भाई-भाई का करे खून।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
ढूंढे मजहव में सुकून, भाई-भाई का करे खून।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
गूंगे बहिरों की सरकार, उस मे गुन्डों की भरमार;
छाया चारों ओर अन्धकार, सुने कोई न हाहाकार।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
छाया चारों ओर अन्धकार, सुने कोई न हाहाकार।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
यह भूख- प्यास के भाषण, झूठे वायदे, झूठा शासन;
कैसे भर पेट मिलेगा राशन, देश मे रहा नही अनुशासन।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
कैसे भर पेट मिलेगा राशन, देश मे रहा नही अनुशासन।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
कण कण में भ्रष्टाचार,रिशवत बनी एक अधीकार;
ऐसी घोटालों की बौछार, नैतिक बातें है बेकार।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
ऐसी घोटालों की बौछार, नैतिक बातें है बेकार।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
देश मे छाया है आतंक, कैसे होगी उस से जंग?
चाहे गोली चले तूफान, नेता की नींद न होती भंग।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
चाहे गोली चले तूफान, नेता की नींद न होती भंग।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
क्या वह भी था जमाना, गहनो से सजी जनाना?
रातों में सफर को जाना और बिना खरौंच के आना।
कैसा था वह जमाना, वह कैसे होंगे लोग?
जो दीन, धर्म, ईमान पे होते थे कुर्बान।
रातों में सफर को जाना और बिना खरौंच के आना।
कैसा था वह जमाना, वह कैसे होंगे लोग?
जो दीन, धर्म, ईमान पे होते थे कुर्बान।
"राजी" दिन कैसे वह लौटे, झूठी बातों के है तोते-
आज के नेता मोटे मोटे, बडा नाम है काम छोटे।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
आज के नेता मोटे मोटे, बडा नाम है काम छोटे।
कैसा है जमाना, यह कैसे कैसे लोग;
दीन, धर्म, ईमान है बिकता सर-ए-आम।
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