Monday, 6 August 2012

HINDI POEM ( new) MAIn Khamosh HuN mujhko------

MAIN KHAAMOSH HUN MUJHKO KHAMOSH RAHNE DO--EK GAZAL( I am silent, let me be so!)

  by  rajee kushwaha in 

Creative

Posted on 19 Sep 2008

THIS POEM WAS WRITTEN IN THE WINTERS OF 1986--SEVEREST WINTER OF THE LAST CENTURY!------I WAS THEN AT SIACHEN ---'SIALA COMPLEX'-----SOME 20,000 FEET ABOVE 'MEAN SEA LEVEL'. I HAD COME DOWN TO BASE CAMP AT 12000 FEET, FOR A DAY---IT IS THEN I WROTE. WE WERE TO GO 'OP TRIDENT THE LONG BEARD IS ITS TESTIMONY. ROOM AT BASECAMP WAS 'BUKHARI HEATED---VERY COZY! I will post the english translation, too. Kindly read on:-

मैं खामोश हूं मुझको जरा खामोश रहने दो,
 खुलेगी 'गर जुबां मेरी, दिलों मे शोला भड्केगा। 


अर्ज किया हैः-
सडक पे चिल्लाने से झूठ कभी सच्च नही होता,
वह पेड क्या झुकेगा जिसमे कभी फल नही होता?
तुम्हारी फितरत है बद्लना गिरगिट की तरह रंग---
हम वह हरियाली है, फागुण में भी रंग कुछ और नही होता।

क्योंकिः-
बातें पर्दे में हमने की, इन्हें पर्दे में रहने दो,
भेद कोई हमने खोला तो शहर में कहर बरसेगा
मैं खामोश हूं मुझको जरा खामोश रहने दो;खुलेगी 'गर जुबां मेरी दिलों मे शोला भड्केगा। 

तुम कुछ भी कहते हो तो यह परिहास होता है-
हम लफ्ज दो कह दे, तो यह अभिशाप होता है;
हमको नही यह शौक, यूं ही नाम ले लेना-
पहल आपकी 'गर हो, हमें तो कर्ज है देना। 
'
मैं खामोश हूं मुझको जरा खामोश रहने दो;
खुलेगी 'गर जुबां मेरी दिलों मे शोला भड्केगा।
मैने माना कि महफिल में अभी रुतवा नही  मेरा,
लेकिन जम जाएंगे हम तो लगा के अपना यहां डेरा;
हम बुलबल है इस चमन की हर शाखा पे टहलेंगे;
कल खेला था एक खेल, अब तो और भी खेलेंगे|
मैं खामोश हूं मुझको जरा खामोश रहने दो;
खुलेगी 'गर जुबां मेरी दिलों मे शोला भड्केगा।
"राजी" तेरे आने की खबरें आज उडी है यूं हवाओं में,
कोई दुखी तेरे अन्दाज से, कोई खुश है तेरी आदाओं से;
तुम चलते जाओ राहों पे, मन्जिल तक कदम ले जाएंगे,
कई'मील के पत्थर' आएंगे, कुछ तुमसे भी टकराएंगे.
मैं खामोश हूं मुझको जरा खामोश रहने दो;
खुलेगी 'गर जुबां मेरी दिलों मे शोला भड्केगा।

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