Wednesday, 13 June 2012

CONVERSATION WITH A MUSLIM DAILY WAGE WORKER --- 15 AUGUST 2008 !

CONVERSATION WITH A MUSLIM DAILY WAGER ON 15 AUGUST 2008!(In Hindustani) Aug 15 2008  | Views 1852 |  Comments  (20)  | Report Abuse Tags: a view point--what does freedom mean आजादी मुबारिक हो? काफी देर से मै उसे अपने घर की बा्ल्कोनी से एक टक नजर लगा के देख रहा था. सुबह नौ बजे का समय था. साल २००८ में, १५ अगस्त का पावन दिन है--सबकी छुट्टी का दिन. पूरा देश निठ्ठल्ला हो रखा था. छुट्टी का मतलब छुट्टी. रेडीयो पर देश भक्ती के गाने बज रहे थे. जैसे कि---मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोती---मेरे देश की धरती----- या फिर कहीं "एफ. एम" रेडीयो चिल्ला रहा था "चक दे इन्डिया--चक दे----ओ, चक दे इन्डिया--चक दे"--एक जगह तो कोई "बिग एफ एम" बहका बहका सा गाना लगा के मुझे परेशान कर रहा था. अरे, क्या है वह गाना---"-------फिर भी दिल है हिन्दोस्तानी----" सुबह सुबह यह लोग ऍसी एसी बहकी बहकी सी बातें शुरू कर देते है कि समझ नही आता क्या कहूं इनको. अभी आप ही बताईए यह'हिन्दोस्तानी दिल' कया कोई खास चीज है. भई दिल तो बस दिल है. इन्सान के शरीर का एक पुर्जा. बस और कुछ नही. इन टी.वी वालों की भी बात ले लो. यह कौनसा कम है? ऐसे बच्चों की तरह एक दूसरे से ईर्ष्या करते है कि पूछो मत. इनके लिए तो यह महाभारत की लडाई है. मगर बिडम्बना यह है सब के सब अपने आपको"पाण्डव" समझते है, और सब कहते है कि भगवान कृषण उनके साथ ही है और वही है सच्चाई के असली वक्ता. आज की ही बात ले लो. एक टी वी चैनल पर 'न्यूज एंकर' गला फाड फाड के सब को १५ अगस्त की महत्ता समझा रहे थे--जैसे किसी को आज तक मालूम ही नही था. किसी किसी चैनल पर तो जगह जगह पे नेताओं के उन्चे उन्चे भाषण हो रहे थे और बह  लम्बी लम्बी डींगे हांक रहे थे अपनी अपनी उपलब्धियां सुना सुना के. सब कुछ आजीब है इस देश में. सब साले खोखले नारे--बर्षों से सुनता आ रहा हूं इनको और इनके पूर्वजों को. साठ साल का हो गया हूं. बाल यूं ही धूप में सफेद नही किए है. मैं तो आप सबको भी यही कह्ता हूं मत सुनो इनकी बाते. इस चुनाव में हरा दो उन सब को जो झूठे, मक्कार , चोर, फरेबी और गुण्डे है. यह प्रण कर लो आज इस आजादी बाले दिन. आज नही करोगे तो कब करोगे. क्या सुना नही वह डॉक्टर इकबाल का शयर-----"------अब भी नही सम्भलोगे गर ए हिन्दोस्तान वालो---तुम्हारी दास्तान तक भी न होगी दास्तानों में----------" मगर क्या करें? उसका खुद का दिमाग भी फिर गया था यह सब कहने के बाद. सच्च कहा है किसी अमेरीकन सी आई ए के एजेन्ट ने,"--हिन्दोस्तानीयों पे भरोसा नही किया ज सकता---दोगलापन उनके खून मे है". अरे, आपको नही  मालूम क्या? आपने क्या वह किताब ----ब्रिगेडियर यूसूफ मोहम्मद, पाकिस्तान आर्मी,--- की नही पढी---उसका नाम है "बियर ट्रैप". हम आपको प्रसंग नही बताएंगे. आप इस किताब को खुद पढीए जरूर. आप जान जाएंगे कि यह दुनिया हमारे बारे क्या सोचती है. मगर झूठ क्या है इन बातों मे? आपको नही लगता अपने इन नेताओं की बातें सुन कर. क्या नही करते सब के सब दोगली बातें? भई, सब की सब पार्टी वाले एक ही थैली के चट्टे बट्टे है. मै नही सुनता इनकी बाते. आज भी मेरा ध्यान इन छिछोरों की तरफ नही मगर उसी इन्सान पर लगा हुआ था. मै चुपचाप निहार रहा था उसे. मै उठा और चल दिया उस से दो बातें करने. बस यूं ही एक दिल में ख्याल आ गया था. या यूं कहो उसके बच्चों पे थोडा रहम आ रहा था. वह इतना मगन था अपने काम मे कि उस ने सिर उठा के हमे देखा तक नही जब हम पहुंचे उसके पास. वह मस्त था अपने काम मे. लगा हुआ था लकडी काटने. कारपेन्टर था ध्न्धे से. दो बच्चे भी लगे हुए थे उसके साथ. मुझसे रहा नही गया---मैने बोल ही दिया आखिर,"मैने कहा, आजादी मुबारिक हो, भई. आज तो छुट्टी कर लो" "बाबू जी, क्यों मजाख करते हो? काहे की आजादी? किसकी आजादी? भूख से कभी इन्सान को आजादी मिल सकती है?"उसने दो टके सा जवाब हमे थमा दिया. "अरे, आज जशन मनाओ--१५ अगस्त है--हम आजाद हुए थे" मैने कहा "क्या बाबूजी--क्या जशन मनाएंगे हम दो वक्त की रोटी तो जुटा नही पाते. अगर हम छुट्टी मनाएंगे तो यह बच्चे क्या खाएंगे? और जानाब यह आजादी तो आप लोगो के लिए है. हमे किस बात की आजादी? भूख से? कपडों से? मकान से? हमें तो आजादी ही आजादी है इन सब से" उसने मानो हमे जोर का एक तमाचा रसीद किया हो. "यार, क्या नाम है तुम्हारा---तुम नही चाहोगे कि यह बच्चे भी थोडा टी.वी बगैरह देखे. घर पे आज के दिन" मैने कुछ यूं ही बोल दिया. "किसका दिल नही करता जनाब--मगर देखें कहां? घर मे टी वी कहां से लांऊ? पेट तो भरता नही है. बडा परिवार है. अनपढ हूं. यह काम करके कुछ गुजारा होता है. मेरा नाम इस्लाम अहमद है, सर, और मैं उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर का रहने वाला हूं. अगर यह सब खरीद लेने की हिमाकत होती तो इधर झोंपडी मे आके क्यों रह्ते?" उसने जवाब दिया. मैं थोडा भौचक्का सा हो गया उस का नाम सुन के. आप सब कहेंगे कि आज के माहौल में यह तो हम सब के साथ नार्मल है. मगर मेरी बजह कुछ और ही थी. मेरी आस्था भगवान में है न कि मजहव के ठेकेदारों पे---- उन पखंडियों के ढकोसले बाजी पे मै कतई नही जाता चाहे किसी भी धर्म के हो. सच्च तो यह है कि मुझे धर्म के नाम से ही चिढ है. मै हिन्दु पैदा हुआ तो हिन्दु हूं. इसके तौर तारीको को पसन्द भी करता हूं मगर मै इसे अपनी कमीज के आस्तीन पे पहन के नही चलता. शायद अगर मुसल्मान पैदा होता तो मुसल्मान बन के रहता. मगर आज की सच्चई को बद्ला नही जा सकता. मुझे धर्म के नाम पर दिखावा अच्छा नही लगता. कोई भी धर्म हो. मगर इतना भी कह दूं मुझे एक बात इस्लाम धर्म की नही अखरती--वह है उसकी असहनशीलता और बाकी धर्मों पे बड्प्पन का दावा. उनकी इसी बात ने दुनिया मे आतंकवाद को बढावा दिया है. मगर यह आम मुसलमान की सोच नही है. उन्हे रोटी, कपडा और मकान से कहां फुर्सत? उन्हे तो भड्काया जाता है इस्लाम के नाम पर--यही बात अब हिन्दुओ मे भी आ रही है. मानता हूं कि यह एक किस्म का प्रतीकूल"रिएक्शन" है. मगर क्यों? हमारे इन 'हिन्दोस्तानी दिलों' में इतना जहर भर गया है कि हम मजहव को ही अपना सब कुछ मान बैठे है. हलांकि मै ऐसा नही मानता---मेरी हैरानी का कारण था वह घर----- जिसमे वह काम कर रहा था--एक काफी पढे-लिखे मगर कट्टर धार्मिक इन्सान का-----किसी राजनैतिक पार्टी का नेता भी है ---आप उसे"हिन्दु" कहेंगे तो चलेगा. मगर मै जानता हूं उसकी"हिन्दुगिरी" सिर्फ दूसरों को भाषण देने के लिए है. अजी, अमरनाथ मंदिर के लिए जमीन के मामले में रोज भड्काऊ भाषण देता है. कुछ दिन से गया हुआ है एक जत्था ले कर. चोरी-छिपे वह सब कुछ करता है जो एक ब्राहमण को नही करना चाहिए. शाराब भी पीता है--गोस्त और मुर्गा भी खाता है---कोई नागा नही सब दिन. है न यह दोगलेपन की बातें. खैर छोडो, हम बात करते है इस्लाम अहमद की. थोडी देर के बाद हमने इस्लाम अहमद से पूछा,"इस्लाम, यह बात बताओ कभी कश्मीर गए हो?   "जी नही और ना ही कभी जाने का विचार है" अहमद ने जवाब दिया. " अरे, क्यो नही. जाना चाहिए--सुन्दर जगह है, कह्ते है जमीं पे अगर कही जन्नत है तो काशमीर ही है." मै ने यूं ही कह दिया. "सर, हमारे लिए स्वर्ग-नर्क अभी तो हमार पेट है. कहां फुर्सत है इन ऊल जुलूल बातों के लिए? यह तो निठल्ले और बेकार लोगों के शौक है. हमारे यू पी मे कह्ते है "मन चंगा तो कठौती मे गंगा" अहमद ने बडे ही प्यार से मेरे सुझाव को नक्कार दिया. मैं भी कम नही था, मैने कहा," अरे, यू पी क्या यह तो हिन्दी का मुहावरा है" "ठीक है हिन्दी हमारी भाषा है , जनाब" अहमद ने फिर हमे दुत्कारा. "अच्छा, यह बताओ यह जो जम्मू और कश्मीर में चल रहा है झगडा--अमरनाथ मन्दिर के लिए जमीन को ले के आपका क्या कहना है", मैने उसका मन टटोलने की कोशिश की. "सर, सही में कहे तो सब के सब् मस्ते हुए लोग है----- रोटी खाने को मिल जाती है-------कपडे पहनने को मिल जाते है-------घर तो है ही बाप-दादों के-- अब आप ही बताओ ऐसी बेकार की बातें नही करेंगे तो क्या करेंगे? कुछ दिन इन लोगों को रोटी ओर् कपडे से जरा दूर रखॉ सब के सब भूल जाएंगे यह---कौन ले जाएगा यह सब जमीन सिर पे रख के?  पढे-लिखे लोग है--ऐसा आचरण है कि हमे भी शर्म आती है मगर हम क्या कर सकते है?" अहमद ने फिर भाषण दिया. "मगर एक बात बताओ तुम्हे डर नही लगता----कुछ लोग नारा लगा रहे है "हिन्दु-राष्ट्र" बनाने का हिन्दुस्तान को" मैने एक बहुत ही टेढा सवाल किया उस से. "एक बात बताओ जनाब, आप तो पढे-लिखे हो. क्या पहले कभी ऐसी कोशिश नही हुई? क्या हुआ? चलो मै बताता हं आपको? औरंगजेब का नाम तो सुना होगा---उसने क्या कोशिश नही की थी इस देश को मुसलमानो का देश बनाने की. सारी ताकत लगा दी थी उस ने. क्या वह ऐस कर पाया? यह सब बेकार लोगों की सोच है--सोचने दो--न तो यह देश हिन्दु-राष्ट्र बनेगा और न यह मुसलमानो का. यह देश हिन्दोस्तानियो का था---उनका है--उनका रहेगा---कह्ते है हमारे पूर्वज भी हिन्दु थे--मगर वह कल था--उससे हमे कोई मतलब नही है---आज हम क्या है---इस से सरोकार है हमे. कोई कह्ता है मजहव के लिए जिहाद करो---- लडो----तो जन्नत जाओगे. जनाब यह जन्नत और नर्क सब यही है. बाकी तो यह सब बाते है--हमे वेबाकूफ बनाने के लिए--जो बेकार है वह बन जाते है." अहमद ने मुझे एक दम हैरत मे डाल दिया. क्या सोच थी इस अनपढ  इन्सान की. मगर मैने फिर एक सवाल कर दिया,"यह सब तो ज्यादतर आपके मजहव के लोग ही कहते है कि "हिन्दु-राष्ट्र "बनने का डर है"  "कहने दो--------उनकी मलकियत कैसे रहेगी हमारे उपर-------अगर उन्होने हम लोगों को इन चक्करों में नही डाला. यह सब आम मुसलमानों को वेबाकूफ बना के अनपढ और कमजोर रखने की चाल है. मगर हम लोग बनते है तो वह बनाते है. और जो नही बनते वह सुखी रहते है. जनाव-फिल्मी सितारों को ले लिजीए--क्यो नही कह्ते कि दिलीप कुमार मुसलमान नही है क्योंकि उसने हिन्दु नाम रखा है? शाहरुख खान को क्यों नही कह्ते कि वह मुसलमान नही है क्योंकि उसने हिन्दु लडकी से शादी की है. नवाब पटौदी की बात करो--उसके बेटे की बात करो. अगर यह सब बाते उन लोगों को मन्जूर है तो हमे क्यों नही---यह सब बातें है---दबदवा बनाने की-- --------------मजहव तो पूजा करने का जरिया है न कि जिन्दगी जीने का----मजहव न तो रोटी देता है न मकान------यह बात होती तो मै सुल्तान पुर में बैठ के मजे से रहता, --------जितनी जल्दी हम यह समझ ले--------ऊतनी जल्दी हम आजाद हो जाएंगे, जनाब" अहमद ने कितनी असानी से यह बातें कह दी थी और मैं उसका मुंह देखता रह गया. मेरे मुख से बस यही बात निकली," बाह !क्या बात है?--------यह है असली आजादी-----------आपको मुबारिक हो यह आजादी अहमद" आजादी का दिन मुबारिक हो सभी पढ्ने वालों को, मगर क्या आपकी सोच अहमद की सोच की तरह आजाद है?   © rajee kushwaha., all rights reserved. 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