Wednesday 13 June 2012

HINDI POEM 27 ( NEW) RONA HI JINKI FITRAT HAI-------

"RONA HI JINKI FITRAT HO"(THOSE WHO CRIB AND CRY AS A HABIT)---A HINDI GEET!

रोना ही जिनकी फितरत है, हर मन्जिल से वह दूर रहें;
हर बात से उनको शिकवा हो ज्यों आदत से मजबूर रहे।

रोना ही जिनकी फितरत है, हर मन्जिल से वह दूर रहें;
हर बात से उनको शिकवा हो ज्यों आदत से मजबूर रहे।
नस नस मे है यह कमजोरी, जमीर भी इनका मरा हुआ;
बदकिस्मत है यह देश मेरा, क्यों इन लोगों से भरा हुआ?
 ------------रोना ही जिनकी फितरत है, हर मन्जिल से वह दूर रहें-

 जीवन का कोई उद्देश नही, काम करने से इन्कार करें;
ऐसे निठ्ठले लोग कभी क्या जीवन को साकार करें?
कुछ वक्त की रेत पे नाम है यह, उड जाएं हवा के झोंखों में;
नही नाम मिलेगा तुम्हे कहीं, चाहे ढूंढो तीनो लोकों मे।
 ------------रोना ही जिनकी फितरत है, हर मन्जिल से वह दूर रहें-

 यह खुद पे ऐसा लांछन है, जननी को भी शर्मसार करें;
जो मन्नत उसने मांगी थी, यह उसको ही बेकार करें।
खुद पे इन्हें विश्बास न हो,किस बात का यह गुरूर करें?
किस्मत को दोषी मानते है, आलस में इन्हे सुरूर मिले।
 ------------रोना ही जिनकी फितरत है, हर मन्जिल से वह दूर रहें-

 भाषण तो इनके खूब बहुत, नारे भी ऊंचे होते हैं;
आंगन में इनके आग लगे,'नीरो' की भांती सोते है।
 'राजी' ऐसे नेताओं का 'भारत' भी आज शिकार हुआ,
 इनका निकम्मापन ही तो 'आतंक' का औजार हुआ।
 -------रोना ही जिनकी फितरत है, हर मन्जिल से वह दूर रहें;
-------हर बात से उनको शिकवा हो ज्यों आदत से मजबूर रहे।

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