Friday 1 June 2012

HINDI POEM-20 (New-6) ---वह दौर जा चुका है हम पे कभी का आ के.

WOH DAUR JAA CHUKA HAI HAM PE KABHI KA AA KE( I have gone through that phase of life Much earlier!)
गाते थे हुमहुमा के, हस्ते थे खिलखिला के;
वह दौर जा चुका है हम पे कभी का आ के.
मुझे याद आ रही है मस्ती भरी हवाएं,
वह नहर का किनारा, वहां "रूप" की अदाएं;
जो दिन बिताए हमने कसमें दिला दिला के-
वह दौर जा चुका है हम पे कभी का आ के.

गाते थे हुमहुमा के, हस्ते थे खिलखिला के;

कुछ आज से अलग थी वह प्यार की इवारत,
शर्म-ऑ-हया की नींव पे बनती थी वह इमारत;
गलियों में'उनसे'मिलते हम नज़रें चुरा चुरा के,
वह दौर जा चुका है हम पे कभी का आ के.

गाते थे हुमहुमा के, हस्ते थे खिलखिला के;
क्या ज़माना आ गया है तेज़-तेज़ चलने का,
बचपन के साथ-साथ ही ज़बानी के भी ढलने का;
हम सपनों में ही मिलते थे बाहें फैला फैला के,
वह दौर जा चुका है हम पे कभी का आ के.

गाते थे हुमहुमा के, हस्ते थे खिलखिला के;

हमारे प्यार में खुशबू थी नख्ररों और इकरार की,
इनके प्यार से बू आती है हवश के गुबार की;
आज़ बेटा बोले बाप से आंखे दिखा दिखा के-
वह दौर जा चुका है तुम पे कभी का आ के.

गाते थे हुमहुमा के, हस्ते थे खिलखिला के;

आज़ वक्त इनका है तो "राज़ी" इन्हे सलाम,
दिल में भी इनके उठता है प्यार का तूफ़ान;
शादी तो यह भी करते है खुद को रुला रुला के-
वह दौर जा चुका है हम पे कभी का आ के.

गाते थे हुमहुमा के, हस्ते थे खिलखिला के; वह दौर जा चुका है हम पे कभी का आ के.

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