Friday 1 June 2012

HINDI POEM -23 ----जीव और पत्थर


   जीव और पत्थर
LIVING AND NON LIVING
Abstract Sculpture
"पत्थर का मैं दिल" हूं चाहे, मगर अडिग जैसे चट्टान,
क्या तोडे मुझे हवा के झोंखे, मैं मोडता हूं तूफ़ान?
प्रयोगशाला का माना मै हूं , छोटा सा एक उपकरण---
सबको सिखाता हूं लेकिन , क्या होती है दिल की धड्कन?

आओ तुम्हे दिखाऊं मैं, इस 'लैबोरेटरी'का एक और औजार-
देख के इसको मन में आप के, उठेंगे कई अनगिनत बिचार;
कहने को तो शल्य-चिकित्सा का, यह है एक उपयोगी यन्त्र-
पर लगता मां के पेट में जैसे, जुडवा भ्रूण कर रहे षडयन्त्र.

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विशवास नही 'गर आपक़ो है तो मै सुनाता हूं इनकी कहानी,
जो बातें इन्होने आपस में की, चलो सुने हम इनकी जुबानी;
सुन सुन के अनोखी बातें इनकी, मुझे हैरत खूब हुई थी-
इस 'पत्थर दिल' में भी तो, कोई सूई सी चुभ गई थी .

जन्म जन्म का साथ है इनका, एक दूज़े के संग:
भिन्न भिन्न रिस्तों में देखे है कई जीवन के रंग;
कभी ठहरे यह भाई-भाई, कभी रहे यह पति-पत्नी,
सुनो आप भी हुई थी क्या, आपस में इनकी वह कथनी.

"जुडवा बन के देखेंगे अब, रंग-बिरंगी हम यह दुनिया,
भाई बना हूं तेरा अब मैं, कैसे करेंगे यह भ्रूण हत्या?"

"इसीलिए इस गर्भ में आई, सुन तू मेरे प्रिय भ्राता;.
पूर्व जन्म में मुझे जलाया, तभी चुनी है यह मैने माता"

"बात तेरी गम्भीर,ओ बहिना!कैसा बन गया है यह नाता?
मुझे कर्ज़ चुकाना था इनका, तभी बनाया जन्म का दाता;
मगर सुनो ओ बहिन हमारी, मां का पेट नही है दुनिया,
नव मास हमें साथ है रहना,मत करना तू गडबड मुनिन्या."

"कैसे भूलूं ओ भाई मेरे! मुझे कैसे इसने जलाया था?
हाथों को मेरे बांध के इस ने तेल में नहलाया था,
याद नही वह दिन क्या तुमको, कैसे तुम चिल्लाए थे?
'कुत्ता' हो कि भी तब तुम, मेरी रक्षा करने आए थे."

"मत भूलो बिल्ली का जीवन, जब यह माता चुहिया थी,
कैसे इन्हे डराती थी, तू क्या 'सती अन्सूईया' थी?
मानो मेरी बात ओ' बहिना, भूल जाओ सब पिछ्ली बातें,
शुरू करते हैं जीवन नया, देंगे प्यार की सब को सौगातें"

"बडी बडी बातें यह सारी, ऊंचे कितने आदर्श तुम्हारे,
भैय्या, क्यों तुम भूल गए जब थे तुम खूनी हत्यारे?
कत्ल किया इस बाप को, और हडप गए सारी जायदाद,
फिर क्यों आ रहे हो तुम, बन के उनकी ही औलाद?"

"मेरी वह नदानी थी, मैं वह भूल मिटाने आया हूं,
जो मैने इनसे कभी छीना था, वह कर्ज़ चुकाने आया हूं;
अपनी इन नदानियों से हम कर्ज़ चढा ले जाते हैं,
कर्ज़-मुक्त होने के लिए हम बार- बार ज़मीं पे आते हैं"

"चलो हम भी देखेंगे, तुम कैसे यह कर पाओगे?
नए ज़माने की दुनिया में, वह ईमान कहां से लाओगे?
गर्भ में है अभी तो भैय्या, वक्त से पैदा होना है---
चक्कर में 'डाकटरों' के मां ने, कभी हसना कभी रोना है?"

'पत्थर दिल' कह के मुझ क्यों धोखे में रह्ते हो?
कैसी कैसी बातें करते "जिन्दा जीव" जिन्हे कह्ते हो?
"राजी' मैं पत्थर ही सही, पत्थर के कितने फायदे है?
क़ोरा हूं तो कोरा ही सही, झूठे तो नही मेरे वायदे हैं.

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