Wednesday, 30 May 2012

HINDI POEM-16 ( New-3) याद मुझे आती है!




याद मुझे आती है!
शायर अर्ज़ कर्ता हूं-
कल देखा था कुछ आंखों ने,आज भी है यह देख रही-
जो राज़ है इनमें छिपे हुए,बहुत है उनकी गहराई;
बूढी है बेशक तो क्या,मुझे हर किस्सा समझाती है?
जो बातें ज़माना भूल गया,उन बातों की याद दिलाती है.
     

      

                               ----क्योंकि----
 
   बात कल की यह नही,बात यह पुरानी है,
कई दशकों में बनी, मेरी यह कहानी है;
कुहू-कुहू कोयल जब,मधुर गीत गाती है,
प्यारे प्यारे मौसम की याद मुझे आती है.

नहर के किनारे वह,छोटा सा इक कस्बा था,
कच्ची पक्की गलियां थी,धूल भरा रस्ता था;
खेतों में सरसों यहां, पीला रंग लाती है-
उसी के सुनहरेपन की याद मुझे आती है.

कैसा वह बचपन था,क्या कहूं ज़माने का?
मन पे कोई बोझ नही,फिक्र नही खाने का;
साफ मुझे रखने को,मॉं जो रोज़ नहलाती है,
आज़ जब मैं मैला हूं, मॉं की याद आती है.

सर में 'गर दर्द हुआ,सर को सहलाती थी-
रातों को जाग के मुझे,लोरी वह सुनाती थी;
गोदी उसकी मेरी तब, हर थकान भगाती है--
मॉं की उस गोदी की याद मुझे आती है.

कलम से लिखते थे,फट्टी का ज़माना था,
स्कूल की कार्यशैली में,काम बस पढाना था;
कभी कभी मास्टर की छडी बरस जाती है,
आज़ भी जाने क्यों उस छडी की याद आती है?

स्कूल हमने छोडा तो 'एन डी ए' को चल दिए,
चार दशकों के लिए नसीब अपने लिख लिए;
रुक गई समय की सुईयां,दिशा बदल जाती है,
आज़ भी सन छियासठ की याद मुझे आती है.

चालू हुआ यूं फौज़ में अपने सफ़र का सिलसिला,
कोना कोना भारत का हमे देख्नने को खूब मिला;
शायद हम सपने में थे,बाहर दुनिया बदल जाती है,
सपने में मिले लोगों की आज़ याद् मुझे आती है.


उत्तर-पूर्व के वो जंगल,असाम की वो ब्रह्मपुत्तर घाटी;
नहरों-नदीयों का पंजाब,'सायचन'औ कश्मीर की वादी,
'यू पी''महू' और राजस्थान से भी अपनी गाडी जाती है,
पूना,बेलगाम,'नीलगिरी'के मौसम की याद मुझे आती है.

बदले वक्त की परछाईयां,कैद है मेरी इन आंखों मे,
ईमान क़ि बातें तो अब, मिलती है सिर्फ किताबों में;
फूंक दो यह किताबें आज़,जो झूठ ही सिखलाती है-
महलों मे रहते रहते "राजी",झुग्गी की याद आती है.

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