Tuesday 29 May 2012

HINDI POEM-9 JANGI LASH

During the KARGIL-99 episode, when the dead bodies of soldiers from the battle fields were being brought to the home town of the dead, there used to be a lot of euphoria in every such town/city--People used to celeberate and GOVERNMENTS of the respective STATES used to announce a lot of cash awards. It became a ritual. In one such case when the dead body of a soldier was brought to his WIDOWED MOTHER--she cried, "I do not want any awards-- GET MY SON BACK." But this small town in GARHWAL hills celebrated the arrival of its MARTYR and was greatly excited. The news report of a crying mother whose husband had died in 1971 war--had appeared in HINDUSTAN TIMES in July 1999. THIS SONG WAS INSPIRED BY THIS PLIGHT OF THIS WIDOW--who was neglected after 1971 war--and I am sure even today she is neglected and uncared. It is an emotional piece.

ज़ंगी लाश-एक गीत
खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-
नाचता था शहर मेरा,"अल्लाह की दुहाई" थी;
साल काफी बीतने पे खुश-खबर यह आई थी--
"फ़ौज़ी लंगडे के मकान इक लाश ज़ंगी आई थी.

-----खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-

शहर में आया कुछ ऐसा इन्सानी तुफ़ान था,
मौत पे "लंगडे" के बेटे यूं हुआ गुमान था;
फूलों की बरसात थी और नारों का उफ्फान था-
"वाह रे फ़ौजी किया तू ने रौशन शहर का नाम था".

-----खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-

जनता की लम्बी कतारें, कुछ नेता भी आए हुए-
उंचे अलफाज़ों में सब ने वायदों के तांते लगाए;
कितना उनमें सच्च था,कितने वो थे ख्याली पुलाव?
याद था लंगडे को, लेकिन दास्तां किसको सुनाए.

-----खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-

आरसा काफी हो गया,कुछ ऐसा ही महौल था,
छाती पे तगमे लिए,घर आया "लंगडा" झूमता-
नारे लगे, वायदे हुए, ईनामों का भी शोर था;
वक्त बीता बात गई,यूं सब ने किया मखौल था.

-----खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-

दूर सरहद पे कभी जब ज़ंगी बादल गरजते,
मेले तो लगते है यूं और आंसू भी है बरसते;
ऐशा है दस्तूर शहर का,ऐशी इसकी फितरतें--
"मौत के साए में पलती फौजीयों की हसरतें".

-----खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-


डूबा हुआ था "लंगडा" कुछ इस तरह की सोच में,
"दो चिता को आग अब", नेता ने बोला जोश में;
लपटें उठी,फौजी समाया आग के आगोश मे,
"बन चुका था राख बेटा,"लंगडा" जो आया होश में".

-----खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-

रस्म पूरी हो गई तो लोग घर को चल दिए,
कैमरा "टी वी बालों" ने बन्द अपने कर लिए;
रह गया "लंगडा" बहां हाथों में अपना सर लिए--
"राख का इक ढेर था और खाक अरमान बन गए".

------खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-


किसके लिए सिसकी भरे,किसके लिए आंसू बहाए,
"राख' बेटे की इधर तो उस तरफ मुर्दों के साए;
एक ने तो जान देकर दिन है फाके के दिए--
"दूजों ने खुदकुशी के सामान पूरे कर दिए.

-------खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-


सोचता यूं सो गया "राजी" गीत का किरदार था,
आया वहां फिर घूमता मरघट का चोकीदार था;
सोचा उसने मर गया कोई गरीब और बेकार था--
"तेल डाला, आग दी, यूं कर दिया उपकार था.

--------खुशनुमा माहौल था, सडकों पे रंगत छाई थी-

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